short info :- हमें यह समझना जरूरी है कि राष्ट्रीय एकता क्या है और क्यों जरूरी है दूसरी इसे चरितार्थ करने में सीबीएसई की क्या भूमिका रही है और कैसे इस संबंध में देश राज्य और राष्ट्र में निहित अंतर को समझना जरूरी है देश अपने मूल अर्थ जहां मनुष्य पैदा हुआ में आज भी अक्सर इस्तेमाल होता है
प्राचीन काल में देश उस छोटे अंतरण क्षेत्र को कहते थे जिससे व्यक्ति निकटता महसूस करता था इसी अर्थ में परदेस गया मजदूर छुट्टी में देश जाता है
इसी अर्थ में मातृभूमि और पितृ का भी प्रयोग होता था और फिर वह बड़ी इकाई बनता गया जंबूदी पर भारतखंडे वाली अवधारणा दुनिया देशों में बढ़ती गई और तरह से देश अस्तित्व में आए मालिक देश गुलाम देश आदि
राज एक राजनीतिक अवधारणा है और आधुनिक काल में उसे इस तरह परिभाषित किया गया है कि वह मात्र सर्वोच्च संस्थाएं यानी संस्थाओं में सर्वोच्च सर्वशक्तिमान स्वतंत्र जैसे वर्ष 1947 के पहले भारत देश तथा राज्य ने वर्ष 1950 में अपना संविधान बना लेने के बाद स्वभाव राज्य हुआ
इसी तरह राष्ट्र एक प्राचीन शब्द है पर उसे आधुनिक परिभाषा दी गई राष्ट्रीय मुक्त एक सांस्कृतिक अवधारणा बनता है यूरोपीय देशों में मुख्यता राष्ट्र का आधार भाषा को बनाया गया अलग-अलग भाषा बोलने वाले अलग-अलग राज बनते गए फिर आर्थिक अनिवार्यता आएं जुड़ती गई
और एक समन्वित राष्ट्रीय बाजार भी राष्ट्र का आधार बन गया और बहुभाषी राज्य बनने लगे क्योंकि हर राष्ट्र में अल्पमत होते ही है इसलिए राष्ट्र के लिए जरूरी माना गया कि वहां रहने वाले उसे अपना समझे यानी उसके प्रति उसमें रिश्ता बहुत को इसे आरोपी नहीं किया जा सकता था
जबकि राज्य अपने आप को आरोपित करता है किसी राज्य के क्षेत्र में पैदा होने वाला हर व्यक्ति उसका नागरिक माना जाता है, राज्य की सरकार से असंतुष्ट कोई व्यक्ति या कह नहीं सकता कि इस राज्य की नागरिकता छोड़ता हूं फिर वह अपराधी करा दिया जाए
लास्ट में अनिवार्यता नहीं होती इसलिए वह अपने को आरोपित नहीं कर सकता भारत जैसे देश में अलग-अलग धर्म और भाषाओं के लोग रहते हैं आज भी कहा जाता है कि बंकिम चंद्र चटर्जी जिससे श्यामला मातृभूमि को सामने रखकर वंदे मातरम विद लिखा था अपने उपन्यास आनंदमठ में वह मातृभूमि मुख्यतः बंगाल थी
राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान उपनिवेशवाद विरोध के मंच पर सारे देशवासियों को लाने के लिए अनेकता में एकता का सूत्र गढ़ा गया इतिहास का राधा मुकुंद मुखर्जी ने इसके लिए इतिहास से आधार जुटाए और वह सूत्र आजादी के आनंद का मुख्य मंच बना दिया इस पर मंत्र में ही नहीं था कि अनेकता सबसे सच्चाई है जिसमें देखता हम चिन्हित कर सकते इसका प्रयास होता रहा प्रपोजल चरितार्थ नहीं हो पाई
इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यही था कि भारत एक नहीं दो राज्यों के रूप में आजाद हुआ बाद में दो से तीन राज्य बन गए और आज तीनों देशों में अनेकता सिर उठाए हैं और राष्ट्रीय एकता की समस्या बनी हुई है

हम केवल भारत की बात करें तो वर्ष 1947 के बाद अनेकता के आधार बढ़ते गए क्योंकि सारे भारत से सारे भारतीयों की निष्ठा नहीं बन पा रही है रिश्ता के आधारभूत तत्व होते जा रहे हैं
जातियों रुक जाते हो तब इसलिए तो बार-बार राष्ट्रीय एकता ही बात की की जाती है आज भारत की राष्ट्रीय एकता को देश के अंदर बढ़ते ब्रिटेन के साथ बाहर से आक्रामक नव साम्राज्यवाद से भी खतरा है
पल भर को रुक कर देख ले कि शिक्षा क्या है और क्या क्या कैसे कैसे करती है या कर सकती है
शिक्षक बौद्धिक उपकरण है जो हमें जीवन और जगत अपने और पराए के बारे में सजा कर सकती है हमारी चेतना और विवेक का विकास कर हमें अपने तात्कालिक और दूरगामी भ्रामक और वास्तविक लाभ हानि के बारे में सोचने पर मजबूर कर सकती है और हमें तमसो मा ज्योतिर्गमय के लिए यानी कि सही राह पर चलने के लिए प्रेरित कर सकती है
शिक्षा यह कैसे करती है शिक्षा हमारी अज्ञान और भ्रम से लड़कर और हमारे चेतना को जागृत करती है शिक्षा में दलित करती है और हमारे शारीरिक आलस और मानसिक मिस करता को नष्ट कर सकती है यह हम सब अपने ऊपर दूसरी बात यह है कि शिक्षक सरिता तब होती जब कहीं से भी तभी कोई मतलब निकलता है
यह शिक्षा केवल नागरिकों के लिए नहीं होगी यह शिक्षा सरकार के लिए जरूरी है कि व्यक्ति राष्ट्रपति भी अपना समझता है जब राष्ट्र यानी कि वह तो रूप में सरकार भी व्यक्ति को अपना समझती है
सरकारों को बीसवीं सदी के स्पेन के विख्यात विचारक और तेजा हित की बात याद रखनी चाहिए कि राज्य का सबसे मजबूत आधार उनकी जन स्वीकार्यता होती है इसलिए जनता और सरकार दोनों अच्छी तरह शिक्षिका दिया जलाएं और राष्ट्रीयता में देश का हित है वह भी संभव है
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